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Sunday, December 31, 2017

The buddha

गौतम बुद्ध ( ५६३ -
भगवान बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी वन में 563 ई.पू. में हुआ था। आपके पिता शुद्धोधन शाक्य राज्य कपिलवस्तु के शासक थे। माता का नाम महामाया था जो देवदह की राजकुमारी थी। महात्मा बुद्ध अर्थात सिद्धार्थ (बचपन का नाम) के जन्म के सातवें दिन माता महामाया का देहान्त हो गया था, अतः उनका पालन-पोषण उनकी मौसी व विमाता प्रजापति गौतमी ने किया था
सिद्धार्थ बचपन से ही एकान्तप्रिय, मननशील एवं दयावान प्रवृत्ति के थे। जिस कारण आपके पिता बहुत चिन्तित रहते थे। उपाय स्वरूप सिद्धार्थ की 16वर्ष की आयु में गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा से शादी करवा दी गई। विवाह के कुछ वर्ष बाद एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। समस्त राज्य में पुत्र जन्म की खुशियां मनाई जा रही थी लेकिन सिद्धार्थ ने कहा, आज मेरे बन्धन की श्रृंखला में एक कङी और जुङ गई। यद्यपि उन्हे समस्त सुख प्राप्त थे, किन्तु शान्ति प्राप्त नही थी। चार दृश्यों (वृद्ध, रोगी, मृतव्यक्ति एवं सन्यासी) ने उनके जीवन को वैराग्य के मार्ग की तरफ मोङ दिया। अतः एक रात पुत्र व अपनी पत्नी को सोता हुआ छोङकर गृह त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पङे।
गृह त्याग के पश्चात सिद्धार्थ मगध की राजधानी राजगृह में अलार और उद्रक नामक दो ब्राह्मणों से ज्ञान प्रप्ति का प्रयत्न किये किन्तु संतुष्टि नहीं हुई। तद्पश्चात निरंजना नदी के किनारे उरवले नामक वन में पहुँचे, जहाँ आपकी भेंट पाँच ब्राह्मण तपस्वियों से हुई। इन तपस्वियों के साथ कठोर तप किये परन्तु कोई लाभ न मिल सका। इसके पश्चात सिद्धार्थ गया(बिहार) पहुँचे, वहाँ वह एक वट वृक्ष के नीचे समाधी लगाये और प्रतिज्ञां की कि जबतक ज्ञान प्राप्त नही होगा, यहाँ से नही हटुँगा। सात दिन व सात रात समाधिस्थ रहने के उपरान्त आंठवे दिन बैशाख पूणिर्मा के दिन आपको सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई। इस घटना को “सम्बोधि” कहा गया। जिस वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे “बोधि वृक्ष” तथा गया को “बोध गया” कहा जाता है।

ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध सर्वप्रथम सारनाथ(बनारस के निकट) में अपने पूर्व के पाँच सन्यासी साथियों को उपदेश दिये। इन शिष्यों को “पंचवगीर्य’ कहा गया। महात्मा बुद्ध द्वारा दिये गये इन उपदेशों की घटना को ‘धर्म-चक्र-प्रवर्तन’ कहा जाता है। भगवान बुद्ध कपिलवस्तु भी गये। जहाँ उनकी पत्नी,पुत्र व अनेक शाक्यवंशिय उनके शिष्य बन गये। बौद्ध धर्म के उपदेशों का संकलन ब्राह्मण शिष्यों ने त्रिपिटकों के अंर्तगत किया। त्रिपिटक संख्या में तीन हैं-
  1. विनय पिटक
  2. सुत्त पिटक
  3. अभिधम्म पिटक
इनकी रचना पाली भाषा में की गई है।हिन्दू-धर्म में वेदों का जो स्थान है, बौद्ध धर्म में वही स्थान पिटकों का है।

Dr. Bhimrao ambedkar song